कोरोना की दूसरी लहर ने पिछले साल की तुलना में ज्यादा आतंकित किया. एक समय को ऐसा लग रहा था अब कुछ नहीं बचेगा. सब लील जाएगा यह दैत्य. माहौल ही यही था. परिवार के परिवार उजड़ रहे थे. घुटन से लोगों की जान जा रही थी. जीवनदायिनी गंगा में अनगिनत लावारिस लाशें उपला रही थी. सबमें भय था कि कहीं यह वायरस चुपके से उन्हें धप्पा ना बोल दे. अपनी जान का भय किसे नहीं होता. पर उन विकट परिस्थितियों में भी कुछ योद्धा काम पर लगे थे. नि:स्वार्थ भाव से.
अपना काम छोड़कर घण्टों सैंकड़ों फोन कॉल करके बेड वेंटिलेटर वेरिफाई करना. ऑक्सिजन की व्यवस्था से लेकर खाना पहुंचाने तक, इंजेक्शन के लिए घण्टों लाइन में लगने से लेकर किसी मरीज की देखरेख के लिए हॉस्पिटल में समय बिताने तक. यह हमारे-आपके इसी समाज के साधारण असाधारण लोग थे. ये जिनको सेवाएं दे रहे थे, ना उनसे जाति या धर्म पूछा, ना सामने वाला मास्क पहनने के कारण इन्हें पहचान पाया. कल को यही कोरोना योद्धा जब बिना मास्क के बाहर निकलें तो लोग इन्हें पहचान भी ना पाएं कि यही आदमी मेरी मदद कर गया था. पर ये जुटे रहे. लड़ते रहे और अंततः दूसरी लहर को शांत होना पड़ा. मेरे लिए यही राम की प्राप्ति है. यही असली रामत्व है.
सनातन सांस्कृतिक ग्रन्थ रामायण के मर्म को समझिए. प्रसंग किष्किंधा कांड का है. माता सीते की तलाश में वन-वन भटकते श्रीराम अनुज लखनलाल के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे. वहां वानरराज बाली और सुग्रीव दो भाई थे. उनका आपसी मतभेद था. व्यक्तिगत तौर पर राम ना बालि से परिचित थे ना सुग्रीव से. फिर उन्होंने सुग्रीव का पक्ष क्यों लिया? ना तो बालि से उनका कोई बैर था ना सुग्रीव के प्रति प्रेम की भावना. राम स्वयं सुग्रीव के पास आए. क्योंकि सुग्रीव ने अपना सबकुछ खोकर भी हनुमान बचा लिया था.
यह हनुमान कोई रामभक्त, बलिष्ठ, लम्बी पूंछ वाला, गदाधारी वानर नहीं बल्कि अपने अंदर की परहित की भावना और अनुशासित जीवनशैली है. हनुमान सेवा की भावना है, जो हम सबके अंदर है, जिसको बस जागृत करने की देर है. जिसने इसको जागृत कर लिया, उसने राम को पा लिया. कोविडकाल में परहित में लगे तमाम युवाओं/युवतियों के अंदर यह हनुमान दिखा. अब जहां हनुमान हैं, वहाँ रामत्व तो होगा ही. जिसके अंदर सेवाभाव है, वही उत्तम है, चाहे वह पुरूष हो या स्त्री. काल बदलते हैं, कहानियां बदल जाती हैं, किरदार बदल जाते हैं, कहानियों के लिखे जाने का तरीका बदल जाता है पर कहानियों के मर्म नहीं बदलते. समझने भर की देर है. अपने अंदर के हनुमान को बचाकर रखिए, आप राम को स्वयं प्राप्त कर लेंगे.

✍️ अमन आकाश (Aman Akash) , बिहार
असिस्टेंट प्रोफेसर, पीएचडी रिसर्च स्कॉलर
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